भारत में खाद्य सुरक्षा एवं मानकों का नहीं किया जा रहा है पालन

भारत के विभिन्न शहरों में सड़कों के किनारे बेचे जा रहे खाद्य पदार्थों से लेकर शॉपिंग मॉल्ज एवं थोक की दुकानों तक पर मिलावटी खाद्य तेल, दूध, चीनी और अनाज जैसी रोजमर्रा की वस्तुएं सरेआम बेची जा रही हैं। परंतु लोगों में जागरूकता का अभाव है, इसलिए मिलावट करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है। पिछले साल भी देश में मौजूद 123 खाद्य प्रयोगशालाओं ने खाने-पीने की वस्तुओं के 29,328 नमूनों की जांच की थी, जिनमें से 5,180 नमूने मिलावटी पाए गए थे। फिर भी, बहुत से आरोपी कानून के चंगुल से बच गए। यह कितने शर्म की बात है कि हमारे देश में लगभग 20 प्रतिशत खाद्य पदार्थ दूषित, घटिया अथवा मिलावटी बिक रहे हैं, परंतु फिर भी इस अपराध के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं चलाया जाता है।

देशभर में  सड़कों के किनारे बेचे जाने वाले गोल-गप्पे, आलू की टिक्कियां, राम लड्डू, समोसे, आइसक्रीम और कुल्फी आदि खाने-पीने की अनेक वस्तुओं की संदिग्ध  स्वच्छता के बावजूद आमजन में इनका विरोध नहीं किया जाता है। मिठाई की दुकानों से लेकर रेस्तरांओं तक में मिलावटी खाद्य उत्पाद बिक रहे हैं। दूध और अन्य पेय पदार्थों में भी मिलावट किए जाने के समाचार आए दिन अखबरों में छपते रहते हैं। यहां तक कि बीते दिनों देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी भारत भर में बिकने वाले मिलावटी और नकली दूध के मुद्दे पर सरकार को नोटिस थमाया था। शीर्ष न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ के सामने एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि प्रशासन की ढिलाई के कारण भारत में बिकने वाला 70 प्रतिशत तक दूध मिलावटी और नकली बिक रहा है। याचिका में दावा किया गया था कि झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा जैसे पांच राज्यों में तो जांच हेतु लिए गए दूध के सभी नमूने फेल मिले और 14 प्रतिशत नमूनों में डिटर्जेंट पाया गया। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से लिए गए 70 प्रतिशत दूध के नमूने भी फेल हुए। ऐसी ही स्थिति देश के अन्य राज्यों के बारे में वर्णित की गई थी। परन्तु न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारों ने देश में बिक रहे मिलावटी दूध और मिलावटी एवं दूषित खाद्य पदार्थों को लेकर कुछ कार्रवाई की है।

जानकारों का कहना है कि मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन करने से हृदय रोग और मस्तिष्क सम्बंधित अनेक गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं। विशेष रूप से बच्चों में तो ऐसा भोजन ग्रहण करने से ज्यादा दु:खद परिणाम निकलते हैं। हमारे देश में खाद्यान्नों एवं सब्जियों के उत्पादन और भंडारण में तरह-तरह के रसायनों और कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग के चलते भी बाजार में मिलावटी खाद्य पदार्थों की भरमार है। इसके अलावा, बहुत से लोग ज्यादा धन कमाने के चक्कर में मिलावट के धंधे को अंजाम दे रहे हैं। हालांकि, यह सही है कि खाद्यान्नों, सब्जियों और फलों के उत्पादकों से लेकर विभिन्न खाद्य वस्तुओं के निर्माता, वितरक और खुदरा एवं थोक विक्रेता भी उपभोक्ता ही होते हैं और उन्हें स्वयं अन्य उपभोक्ताओं की सुरक्षा के विषय में सोचना चाहिए। परंतु एक तो अज्ञानता और दूसरे लालच के कारण देश में मिलावट का कारोबार बढ़ रहा है। सन् 2008-09 में मिलावटी खाद्य पदार्थों का जो कारोबार मात्र 12 प्रतिशत था, वह आज बढ़कर 25 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।

किसान के खेत से लेकर उपभोक्ता की प्लेट तक सुरक्षित भोजन पहुंचने को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ नामक निकाय का सन् 2008 में गठन किया था ताकि खाद्य सुरक्षा के नियमन और देख-रेख के माध्यम से लोक स्वास्थ्य की सुरक्षा को बढ़ावा मिल सके। इस संवैधानिक निकाय का गठन ‘खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006’ के तहत किया गया है। यह प्राधिकरण भोजन के उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण, बिक्री तथा भोजन के आयात एवं निर्यात सम्बंधित प्रयोजन के लिए विज्ञान आधारित मानको को तय करता है। इस प्राधिकरण का मूल उद्देश्य मानव उपयोग के लिए सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन को सुनिश्चित करना है। हालांकि, खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम सन् 2006 ई. में बनाया गया था, परंतु इस कानून को अगस्त 2011 में ही लागू किया गया है।

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण खाद्य पदार्थों की लेबलिंग, स्वच्छता, इनमें मिलाए जाने वाले एडिटिव्ज, कीटनाशकों के अवशेषों की उपस्थिति आदि के साथ-साथ इनके उत्पादन, वितरण और भंडारण पर भी नजर रखने के मानक तैयार कर चुका है। प्राधिकरण ने स्ट्रीट-वेंडर्स जैसे असंगठित क्षेत्र को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश भी तैयार कर लिए हैं, परंतु राज्य सरकारें अब तक उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने में नाकाम रही हैं। ‘खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006’ के वजूद में आने के बाद ‘खाद्य अपमिश्रण अधिनियम,1954’, ‘फल उत्पाद आदेश, 1955’, ‘मांसाहार उत्पाद आदेश, 1973’, ‘वनस्पति तेल उत्पाद (नियंत्रण) आदेश, 1947’, ‘खाद्य तेल पैकेजिंग (विनियमन) आदेश, 1988’, ‘साल्वेंट एक्सट्रेक्टिड तेल, डी-ऑयल्ड भोजन और खाद्य आटा (नियंत्रण) आदेश, 1967’, ‘दूध एवं दूध उत्पाद आदेश, 1992’ जैसे केंद्रीय अधिनियमों को निरस्त कर दिया गया है ताकि भोजन की सुरक्षा एवं मानकों से सम्बंधित बहुस्तरीय और बहुविभागीय नियंत्रण के स्थान पर एक ही कानून से काम पूरा हो सके। परन्तु इस प्राधिकरण के पास आज भी आधारभूत ढांचे की कमी है। इसलिए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने केंद्र सरकार से देश भर में खाद्य सुरक्षा की प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए 5 हजार करोड़ रुपए की मांग की है। इस धनराशि को 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान खर्च किया जाएगा। जहां तक इस प्राधिकरण की उपलब्धियों का प्रश्न है, अब तक प्राधिकरण ने 10 लाख लोगों को लाइसेंस जारी किया है, जबकि फरवरी, 2014 तक इसको देश भर में असंगठित एवं संगठित क्षेत्र की 55 लाख खाद्य एवं पेय कंपनियों, खाद्य पदार्थों के निर्माताओं और विक्रेताओं को रजिस्टर करके उन्हें लाइसेंस देना है।

‘खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006’ नामक नए कानून के वजूद में आने के पश्चात देश में विद्यमान मिलावटखोरों और दूषित वातावरण में भोजन का कारोबार करने वालों को अब अपनी अवैध गतिविधियां बंद करनी होंगी। उक्त कानून में दूषित एवं मिलावटी भोजन के उत्पादकों, वितरकों, विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। अब ऐसे किसी भी आरोपी को कम से कम 10 लाख रुपए का जुर्माना और 6 महीने से लेकर आजीवन कारावास का दंड दिया जाएगा। इससे पहले इस अपराध की प्रकृति के आधार पर 500 रुपए से 5 हजार रुपए तक का जुर्माना अथवा 3 महीने से आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान था। खाद्य पदार्थों के अलावा दवाइयों और कॉस्मेटिक्स में मिलावट करने वालों के लिए भी सरकार ने जो नया कानून बनाया है, उसमें भी 10 लाख रुपए के जुर्माने के साथ-साथ आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। इस कानून का विवरण निम्नलिखित है :

  • औषधि और कॉस्मेटिक अधिनियम, 1940 नामक अधिनियम मुख्यत: औषधि व कॉस्मेटिक के उत्पादन, वितरण तथा आयात पर नियमानुसार नियंत्रण करता है ताकि औषधि उपचार के उच्चतम गुणवत्ता स्तर को बनाया जा सके क्योंकि मिलावटी, नकली और अवमानक दवाओं से मानव शरीर को काफी नुकसान हो सकता है।
  • सभी औषधियां (आयुर्वेदिक, सिध्द और यूनानी) का प्रयोग मानव या पशुओं के आतंरिक या बाहरी उपयोग के लिए उनकी किसी भी बीमारी अथवा विकार के निदान, उपचार तथा रोकथाम में किया जाता है। इसके अतिरिक्त शरीर में कीडे अादि व्याधि को नष्ट करने के लिए भी दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इस अधिनियम के तहत केन्द्र तथा राज्य सरकारों को अपने-अपने स्तर पर दवाओं तथा कॉस्मेटिक की गुणवत्ता की जांच व नियंत्रण करने के लिए नियम व निर्देश बनाने तथा ड्रग इंस्पेक्टरों को नियुक्त करने का अधिकार है। ड्रग इंस्पेक्टर संदेहास्पद स्थिति में केन्द्र व राज्य की ड्रग लेबोरेट्री को तुरंत औषधि की जांच का निर्देश दे सकते हैं। जांच में किन्हीं भी दवाओं के नकली पाए जाने पर सरकार उनके उत्पादन, आयात और बिक्री पर प्रतिबंध लगा सकती हैं। इस अधिनियम के तहत नियमों का पालन न करने वालों के लिए सजा का प्रावधान भी है जिसके तहत अपराधी को 3 से 10 वर्ष तक की कैद तथा जुर्माना भी हो सकता है। यह जुर्माना तीन वर्ष पहले तक 500 रुपये से 10,000 तक का ही था परन्तु अब इस अपराध के लिए कम से कम 1 लाख रुपये का जुर्माना और आजीवन कैद हो सकती है। अपराधी पर कारावास की सजा और जुर्माना दोनों एक साथ भी आयत किया जा सकता है।
  • औषधि और कॉस्मेटिक अधिनियम, 1995 में हुए संशोधन में कुछ विशेष दवाओं की एक लिस्ट जारी की गई थी। इस सूची में शामिल दवाओं के निर्माण, आयात तथा निर्यात के लिए लाइसेंस लेना आवश्यक है। हाल ही में इन विटरो ब्लड ग्रुप, सेना तथा एचआईवी, एचबीएजी, एचसीवी के डायगनोज यंत्र रखने के लिए भी लाइसेंस जारी करने का प्रावधान बनाया गया है। इसके अतिरिक्त सभी आयातित वस्तुओं के निर्माण की जांच के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना भी अनिवार्य किया गया है।
  • केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने नकली दवाओं के कारोबारियों पर अंकुश लगाने तथा इस अपराध को खत्म करने के लिए औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 में तीन वर्ष पहले संशोधन करवा कर उसे अब उसे बहुत सख्त बना दिया है। इससे पहले नकली दवाओं की वजह से किसी व्यक्ति की मौत हो जाने के मामले में दोषियों को अधिकतम दस साल की कैद और दस हजार रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान था जबकि न्यूनतम सजा तीन वर्ष की ही थी। अब इस अधिनियम में सजा के अवधि को बढ़ा कर उसे बढ़ाकर आजीवन कारावास कर दिया गया है। नकली एवं मिलावटी दवाइयां बनाने एवं बेचने के अपराध को अब एक संगीन एवं गैर जमानती अपराध भी घोषित कर दिया गया है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय द्वारा देश में नकली एवं मिलावटी दवाई बनाने वालों पर कानूनी शिकंजा कसने के लिए ‘द ड्रग्स एण्ड कॉसमेटिक्स (अमैंडमेंट) एक्ट, 2008’ नामक कानून 10 अगस्त 2009 से लागू करवा दिया गया है। इस कानून के तहत अब नकली व घटिया दवाईयां बेचने व बनाने वाले अपराधियों के लिए आजीवन कारावास तथा 10 लाख रुपये या जब्त की गई नकली दवाईयों के मूल्य से 3 गुणा रकम में से जो भी ज्यादा हो का जुर्माना अथवा कैद और जुर्माना दोनों को आयत करने का प्रावधान है। अब घटिया एवं मिलावटी दवाएं बेचना या बनाना एक गैर जमानती एवं संगीन अपराध की श्रेणी वाला अपराध है। इतना ही नहीं बिना वैध लाइसेंस के घटिया एवं मिलावटी दवाईयों का निर्माण करने के अपराध में अब कम से कम 3 वर्ष का कारावास तथा एक लाख रुपये का दण्ड आयत किया जा सकता है। यूनानी, सिध्द और आयुर्वेदिक दवाईयों के निर्माण में भी यदि मिलावट पाई जाती है तो ऐसी दवाईयों के निर्माताओं एवं बिक्री करने वाले पर कम से कम 50 हजार रुपये का जुर्माना आयत होगा। यदि देश का कोई वैज्ञानिक अथवा शरीर विज्ञान से संबंधित कोई भी विशेषज्ञ किसी भी तरह के असुरक्षित एवं अवैध क्लीनिकल ट्रायल में संलिप्त पाया जाता है तो उसे भी कानून की जद में लिया जा सकता है। ऐसे वैज्ञानिकों को 5 वर्ष की कैद और 20 लाख रुपये का दण्ड भी देना पड़ सकता है। इस तरह के तमाम मामलों से वसूला गया जुर्माना पीड़ित व्यक्ति के परिजनों को दिया जाएगा। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के अनुसार ऐसे अपराधों के मुकद्दमों का शीघ्र निपटान करने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों को यह काम सौंपा जा रहा है। इतना ही नहीं, मिलावटी या नकली दवाएं तथा सौंदर्य प्रसाधन बनाने और बेचने वालों की सूचना देने वालों और ऐसे अपराधियों के विरूध्द आवाज उठाने वालों को भी सरकार समुचित प्रोत्साहन राशि  ईनाम में दे रही है।             किसी भी दवा की सुरक्षा और प्रभाव हालांकि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के शेडयूल वाई द्वारा सुनिश्चत किये जाते हैं और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) के पास किसी ड्रग को देश में प्रतिबंधित करने का अधिकार भी है, लेकिन किसी संगठन या नियामक द्वारा दवा पर प्रतिबंध लगाने की कोई व्यवस्था फिलहाल अपने देश में नहीं है।

उपभोक्ताओं व उद्योगों के हितों की रक्षा के लिए देश में कई कानून हैं जिनके तहत ऐसे उत्पाद बेचने व बनाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जा सकती है। जैसे ऊपर वर्णित ड्रग्स एंड कॉस्टमेटिक एक्ट, 1940 के अतिरिक्त उपभोक्ता सुरक्षा कानून, 1986, ट्रेडमार्क एक्ट, 1999, खाद्य अपमिश्रण निवारण कानून, 1954, बौध्दिक संपदा कानून, 1970 आदि हैं। हाल ही में संसद ने खाद्य पदार्थ पैकेजिंग एक्ट जैसा एक प्रभावी कानून पास किया है जो उपभोक्ताओं के हितों की पूर्णत: रक्षा करने में सक्षम है। परन्तु यह तो उपभोक्ताओं का दायित्व है कि वे दुकानदारों से जिद्द करें कि उन्हें रसायन और मिलावट रहित उत्पाद ही मुहैया कराए जाएं। उसके बाद ही इन अपराधों पर अंकुश लग पाएगा क्योंकि बाजार की ताकतों से ही इस मुद्दे पर सुधार हो सकता है।।

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